वन्य जीव
वन्य जीव वनों में निवास करने वाले जीव हैं जो प्राकृतिक पर्यावरण के अभिन्न अंग है तथा जैव-विविधता के प्रतीक हैं। राजस्थान के भौगोलिक वातावरण की विविधता के कारण यहाँ वन्य जीवो में विविधता है। राज्य में एक ओर विभिन्न प्रकार के जंगली जानवर है तो दूसरी ओरशाकाहारी जीव तथा रेंगने वाले जीव तथा विविध प्रकार के पक्षी है।
मांसाहारी पषुओं में बाघ, ते ंदुआ, जरख, जंगली बिल्ली, बिज्जू, भेड़िया, सियार, लोमड़ी, जंगली कुत्ता आदि हैं। बाघ मुख्यतया सवाई माधोपुर, धौलपुर, अलवर, करौली, कोटा, सिरोही, चित्तोड़गढ़, उदयपुर, बूंदी तथा डूँगरपुर के जंगलो में पाये जाते हैं। जब कि चीते सिरोही, उदयपुर, भीलवाड़ा, डूँगरपुर, करौली, प्रतापगढ़, कोटा तथा अजमेर जिलो में मिलते हैं।
शाकाहारी पषुओं में काला हिरण, चिंकारा, साँभर, नील गाय, चीतल, चौसिंधा, भालू,जंगली सूअर, खरगोष, बंदर, लंगूर प्रमुख है।
काला हिरण - भरतपुर, सिरोही, जयपुर, बाड़मेर, अजमेर, कोटा जिले में।
चिंकारा - भरतपुर, सवाई माधोपुर, जालौर, सिरोही, जयपुर, जौधपुर में।
साँभर - भरतपुर, अलवर, सवाई माधोपुर, उदयपुर, चित्तोड़गढ़, कोटा, झालावाड़, जयपुर, बाड़मेर,
अजमेर, डूँगरपुर, बाँसवाड़ा में।
नील गाय - अजमेर, करौली, भरतपुर, झालावाड़, कोटा, गंगानगर, हनुमानगढ़ में।
चीतल - भरतपुर में।
राजस्थान का राज्य पक्षी गोंडावन है, जो दुर्लभ प्रजाति की श्रेणी में है। यह बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर क्षेत्रों में है। इसके अतरिक्त मोर, तीतर, काला तीतर, तिजौर, बटेर, सारस, बुलबुल, नीलकंठ, बाज, गिद्ध, मैना, तोता, कबूतर, कौआ आदि अनेक पक्षी है। घना के पक्षी विहार को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता है, यहाँ का मुख्य आकर्षण प्रवासी साइबेरियन क्रेन है, जो यहाँ शीतकाल में आते हैं। इसी प्रकार फलौदी के निकट खींचन में कुरंजा पक्षियो का प्रवास पर्यटको के लिए आकर्षण का केन्द्र है।
वन्य जीव संरक्षण, राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य
वन्य जीव प्राकृतिक धरोहर है तथा पारिस्थितिक दृष्टि से उनका अत्यधिक महत्त्व है। वन्य जीवो की निरन्तर कमी आज विष्वव्यापी समस्या है। राजस्थान में भी वन्य जीवो की संख्या में कमी हो रही है तथा अनेक प्रजातियो के विलुप्त होने का संकट है। वन्य जीवो की कमी होने के प्रमुख कारण है। 1. वनों की कमी होना, 2. जलवायु परिवर्तन, 3. वन्य जीवो के प्राकृतिक आवासो का नष्ट होना, 4. वन्य जीवो का षिकार, 5. जल स्त्रोतो का सूखना, आदि। वन्य जीव पारिस्थितिक तन्त्र के अभिन्न अंग हैं अतः वन्य जीवो का संरक्षण आवष्यक है।
वन्य जीवो के संरक्षण हेतु राजस्थान में सर्वप्रथम 1951 में वन्यजीव एवं पक्षी संरक्षण नियम द्वारा इस दिषा में पहला कदम उठाया गया था। 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण एक्ट तथा 1986 में पर्यावरण संरक्षण एक्ट द्वारा वन्य जीवो की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु कानूनी प्रावधान किये गये। अनेक स्वयं सेवी संस्थाएं एवं सामाजिक संस्थाएं भी वन्य जीवो के संरक्षण में अच्छा कार्य कर रहे है। विष्नोई समाज के लोग वन्य जीवो की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध है। वन्य जीवो के संरक्षण हेतु राज्य में सबसे महत्त्वपूर्ण कदम राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर प्रोजेक्ट, अभयारण्य एवं सुरक्षित क्षेत्र बना कर किया गया है। इनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है-
राष्ट्रीय उद्यान/टाइगर प्रोजेक्ट: रणथम्बोर राष्ट्रीय उद्यान - सवाई माधोपुर के निकट रणथम्बोरके चारो ओर के क्षेत्र में फेला यह राष्ट्रीय उद्यान बाघ संरक्षण स्थल है। यहाँ बाघ के अतरिक्त बघेरे, रीछ, सांभर, चीतल, नीलगाय आदि अनेक वन्य जीव निवास करते हैं।
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान - भरतपुर के निकट यह एषिया में पक्षियो का सबसे बड़ा प्रजनन क्षेत्र माना जाता है। घना के नाम से विख्यात इस क्षेत्र में 113 प्रजातियो के विदेषी प्रवासी पक्षी और 392 प्रजातियो के भारतीय स्थानीय पक्षियो को हर वर्ष देखा जा सकता है। यहाँ साइबेरियन क्रेन (सफेद सारस) सर्दी में प्रवास करते हैं।
राष्ट्रीय मरू उद्यान, जैसलमेर - वर्ष 1981 में जैसलमेर में ‘राष्ट्रीय मरू उद्यान‘ की स्थापना इस क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति एवं करोड़ो वर्षो से भूमि में दबे जीवाष्मो के संरक्षण हेतु की गई। इसे जीवाष्म उद्यान भी कहा जाता है। यहाँ जीवाष्म एवं वनस्पति संरक्षण के अतरिक्त यहाँ चिंकारा, चौसिंधा, काला हिरण एवं गो ंडावन का भी संरक्षण किया जाता है।
इसके अतिरित कोटा जिले में मुकन्दरा हिल्स को भी राष्ट्रीय उद्यान का स्तर देना स्वीकार किया गया है। सरिस्का टाइगर प्रोजेक्ट - अलवर से 35 किमी. दूर सरिस्का नामक स्थान पर ‘बाघ परियोजना‘ के रूप में ‘राष्ट्रीय उद्यान‘ का स्तर दिया गया है। यहाँ बाघ के अतिरिक्त अनेक वन्य जीव निवास करते हैं। किन्तु सरिस्का का कटु सत्य यह है कि यहाँ वर्तमान में बाघ समाप्त हो गये है। पुनः बाघो को बसाने के लिये अन्य क्षेत्रों से बाघ लाये जा रहे हैं। वन्य जीव अभयारण्य
राजस्थान में वन्य जीवो के संरक्षण हेतु अभयारण्यो को बनाया गया है। राज्य के प्रमुख अभयारण्य हैं - नाहरगढ़ (जयपुर), जमवारामगढ़ (जयपुर) तालछापर कृष्ण मृग (चूरू), जयसमंद (उदयपुर), सीता माता (चित्तोड़गढ़), बस्सी (चित्तोड़गढ), फूलवाड़ी की नाल (उदयपुर), भै ंसरोड़गढ़ (चित्तोड़गढ़), सज्जनगढ़ (उदयपुर), जवाहर सागर (कोटा), शेरगढ़ (बांरा), टाडगढ़ (ब्यावर के निकट), चम्बल (कोटा), रामगढ़ विषधारी (बूंदी), बन्ध बारेठ (भरतपुर), सवाई मान सिंह (सवाई माधोपुर), केला देवी (करौली), राम सागर (धौलपुर), आबू पर्वत (सिरोही), कुम्भलगढ़-राणकपुर (उदयपुर)।
मृगवन -
राजस्थान में निम्नलिखित मृगवन हैं: अषोक विहार मृगवन (जयपुर), माचिया सफारी पार्क (जोधपुर, कायलाना झील के पास), चित्तौड़गढ़ मृगवन, पुष्कर मृगवन, संजय उद्यान मृगवन (षाहपुरा-जयपुर), एवं सज्जनगढ़ मृगवन (उदयपुर)।
आखेट निषिद्ध क्षेत्र:
वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 37 के अनुसार राज्य में 33 क्षेत्रों को आखेटनिषिद्ध क्षेत्र घोषित किया गया है। इन क्षेत्रों में रहने वाले वन्य प्राणियो की सुरक्षा की जाती है तथा यहाँ षिकार वर्जित होता है।
राजस्थान में वन्य जीवो के संरक्षण एवं उनके आवास स्थलो को सुरक्षित रखने के लिये एक रिर्पो ट तैयार की गई है तथा उसको लागू करते हुए एक कमेटी गठित की गई है। प्रदेश में वन्य जीवो का आकलन कराया जा रहा है। रणथम्बोर एवं सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र को सुरक्षित रखने हेतु अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में वन्य जीव प्रबन्धन पर विषेष ध्यान देने की आवष्यकता है, विषेषकर वनों को सुरक्षित रखना, तथा वन्य जीवो के षिकार पर पूरी तरह रोक लगाना अतिआवष्यक है। वन्य जीवो की विलुप्त होती प्रजातियो का समुचित ज्ञान प्राप्त करना तथा उनके संरक्षण की व्यवस्था करके उन्हे विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।