मेरे प्रिय देशवासियों !
वह देश जो अपने वैभव के लिए विख्यात रहा है, वह देश जिसने विदेशियों को बार-बार ललकारा, आज वह फिर लुट रहा है। अमर्यादित भोग, गैर जिम्मेदार एवं संवदेनहीन संस्कृति की काली साया चारों ओर से बढ़ी चली आ रही है। धरती के धन की बेतहासा चोरी जारी है। विकास के लिए उधार ली गई पूंजी का निरन्तर गबन हो रहा है। रिश्वतखोरी मान्यता प्राप्त हो गयी है। कर चोरी को व्यवस्था की मौन स्वीकृति है। देश लुट रहा है लेकिन लुटेरे इस बार विदेशी नहीं हमारे व अपने ही हैं। यह एक दुःखद आश्चर्य किन्तु सत्य है कि जितना विदेशियों ने 200 वर्षों में नहीं लूटा उससे अधिक हमारे अपनों ने ही 65 वर्षों में लूटा है। एक ओर लुटेरों के धन विदेशी बैंकों में बढ़ता जा रहा है और दूसरी ओर प्रतिवर्ष 60 से 70 लाख लोग इसलिए दम तोड़ रहे हैं कि उन्हें समुचित भोजन नहीं नसीब हो पा रहा है। विकास कि यह कैसी बिडम्बना है? कि 84 करोड़ व्यक्ति मात्र 20 रुपये में ही अपना जीवन बसर करने के लिए बेवश हैं। इससे बड़ी और क्या शर्मनाक बात हो सकती है कि हर एक घण्टे में दो अबलाओं की इज्ज़त लूट ली जाती है और तीन मासूमों को इसलिए मार दिया जाता है कि उनके परिजन दहेज नहीं जुटा पाते हैं। हाँ! इस बीच व्यवस्था में एक इतिहास रचा है- वह है आत्महत्याओं का इतिहास। ऐसा न कभी हुआ और न कभी होगा कि जब सुबह की नई किरण देखने से पहले ही 56 किसान आत्महत्या कर लेते हैं। यानि एक दशक में 20 लाख लोगों ने खुद को मार लिया है।
मेरे वीर सपूतों ! इसके पहले कि यह आग बढ़ती हुई आपके घर तक पहुँच जाये, जागिए! उठिए! और आगे बढ़िए! जहाँ है इसे वहीं रोक कर इस तरह बुझा दीजिए कि फिर से कभी सुलगने न पायें। ताकि फिर कोई भूख से मरने न पाये, किसी भी बहन की इज्ज़त न लूटी जाए, किसी अबला की बलि न चढ़े व कोई अन्नदाता आत्महत्या न करें। यदि यह आग आपके पहाड़ जैसे संकल्प से, धरती जैसे धीरज से, समुद्र जैसे सत्याग्रह से नहीं बुझती है तो इसे बुझा दीजिए अपने लहू से। मेरे भाईयों ! विश्वास रखिये कि इस राष्ट्र यज्ञ में आपके साथ पहली आहुति मेरी ही होगी।
आज इतिहास उस मोड़ पर खड़ा है जब गांधीजी ने समाज से सत्याग्रहियों को मांगा था, जब विवेकानन्द जी ने विह्नल होकर युवाओं को पुकारा था, गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा का आह्नान किया था, तो नेता सुभाषचन्द्र बोस जी ने लोगों से रक्त मांगा था और जयप्रकाश जी ने तरुणों की ओर आशा भरी नजरों से देखा था। आज मैं पुकार रहा हूँ, हे! मेरे भारत! मुझे हजारों लाखों ऐसे सत्याग्रही दें, जो इस अन्धी, गूंगी एवं भ्रष्ट व्यवस्था से अपनी आखिरी साँस तक सत्याग्रह करते हुए या तो इसे मिटा दे या स्वयं मिट जायें।
मेरे प्रिय भाईयों ! असत्य के विरुद्ध सत्य, अन्याय के विरुद्ध न्याय, भ्रष्टाचार के विरुद्ध सदाचार के इस शान्तिमय संघर्ष में अब वह वक्त आ गया है कि धरती का कर्ज चुका दिया जाए, नहीं तो आने वाली पीड़ियाँ हमें कभी भी माफ नहीं करेंगी। यदि आप इसमें अन्तिम साँस तक सत्याग्रह करना चाहते हैं तो मेरे पास आईये, मैं आपकी प्रतिक्षा कर रहा हूँ।
एफडीआइ में 80 फीसद काला धन - स्वामी रामदेव
[Friday, July 06, 2012 8:09:49 AM] , नौ अगस्त को रामलीला मैदान में होगा आंदोलन राजनीति से दूर हों स्वायत्त संस्थाएं कोयला मंत्रालय में 200 लाख करोड़ का घोटाला जागरण संवाददाता, लखनऊ : विदेशों में जमा चार सौ लाख करोड़ रुपये काले धन का 80 फीसद हिस्सा एफडीआइ (फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट) के माध्यम सफेद होकर देश में आ रहा है। फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट बनाकर देश में प्रबंधकों की तैनाती तो कर दी जाती है, लेकिन उनके मालिकों के नाम का पता नहीं चलता। नौ अगस्त को दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले आंदोलन के सिलसिले में राजधानी आए योग गुरु स्वामी रामदेव शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
निरालानगर के माधव सभागार में आयोजित मध्य जोन कार्यकर्ता सम्मेलन के उपरांत योग गुरु ने लकड़ी की बनी काले धन की प्रतीकात्मक चाबी को दिखाते हुए कहा कि काले धन की इतनी बड़ी चाबी हिंदुस्तान के पास होगी। जिसके लिए नौ अगस्त को अनिश्चित कालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली म्यूनिसिपल बोर्ड द्वारा आंदोलन की अनुमति मिल चुकी है। पुलिस और अग्निशमन विभाग की अनुमति की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस का नाम लिए बगैर योग गुरु ने कहा कि उनके आंदोलन में एक पार्टी को छोड़ सभी हिस्सा ले रहे हैं। योग गुरु ने कहा कि 400 लाख करोड़ रुपये काला देश में लाना, भ्रष्टाचार को मिटाना और देश में साम्राज्यवादी, अन्यायपूर्ण भ्रष्ट व्यवस्था के परिवर्तन और मानवतावादी व्यवस्था को स्थापित करने के पक्षधर सब उनके साथ आ सकते हैं। उन्होंने प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले के बारे में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर अनभिज्ञता जताई, लेकिन स्वायत्तशासी संस्थानों के अध्यक्षों के चुनाव में राजनीतिक हस्तक्षेप न करने की सलाह अवश्य दी।
राजनीतिक हस्तक्षेप से इनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठते हैं। योग गुरु ने कहा कि समाज सेवी अन्ना हजारे भी उनके आंदोलन के साथ हैं। एक अखबार में प्रधानमंत्री के छपे बयान पर टिप्पणी करते हुए योग गुरु ने कहा कि प्रधानमंत्री के कोयला मंत्रालय में ही 200 लाख करोड़ का कोयला कौड़ियों के दामों में नीलाम कर दिया। टूजी स्पेक्ट्रम व कॉमनवेल्थ गेम जैसे कई घोटाले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में ही हुए हैं। इससे पहले योग गुरु ने पंतजलि योग समिति एवं भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के मध्य उप्र के कार्यकर्ताओं का आंदोलन की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। योग गुरु ने कहा कि दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के हर राज्य व शहर में आंदोलन होगा। इलाहाबाद और वाराणसी में भी कार्यकर्ता शामिल होंगे।
वैश्विक षड्यन्त्र ....
देश की लगभग 99 % जनता को लगता है कि देश व दुनियाँ जैसे सामने से दिख रही है वैसे ही सरलता, सहजता, समरसता, प्रेम, सदभावना, समझदारी, लोकतान्त्रिक एवं न्यायपूर्ण तरीको से चल रही है। दुर्भाग्य से जैसे हमें दिख रहा है वैसे दुनियाँ नहीं चल रही है। उदाहरण के तौर पर हम चार विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. राजनैतिक षड्यन्त्र : भारत का प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो अमेरिका व अमेरिकन कंपनियों तथा अन्य विदेशी कंपनियों के हित में नितियाँ बनाने वाला हो, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नितियों व विषयों पर अमेरिका के नितियों का समर्थन हो, इसके लिए विदेशी ताकतें सामाजिक व आर्थिक रूप से एक लम्बी कार्ययोजना के तहत काम करती हैं। मिडिया मैनेजमेन्ट से लेकर इमेज-बिल्डिंग के लिए बहुत ही बुद्धिमत्ता के साथ काम करती हैं। आने वाले 5 वर्षों से लेकर 50 वर्षों तक भारत के विकास के माडल कैसे हों जिससे कि विदेशी कंपनियाँ अपनी तकनीक, अपनी फैक्ट्रियाँ एवं अनुसंधान उसी दिशा में करें और विदेशों की प्रतिबंधित दवा, हथियार व अन्य उत्पाद भारत में खपते रहें, भारत एक डैम्पिंग सेन्टर बन जाए, इस प्रकार बहुत से ऐसे विषय हैं। हमारी संसद में भी अमेरिका, यूरोप व अन्य विदेशी कंपनियों तथा उन देशों के समर्थक लोगों को बाकायदा फाइनेंश करके तथा अनेक प्रकार से परोक्ष रूप से मदद करके संसद में तथा विधानसभाओं में भेजा जाता है, जिससे की देश के जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदाओं पर विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सके। F.D.I.यानी विदेशी पूँजी निवेश के जरिए विदेशी कंपनियों व भ्रष्टाचार करके देश को लूटने वाले लोगों का भारत के सभी आर्थिक संस्थानों, रिटेल से लेकर शेयर मार्केट तक पूरी अर्थव्यवस्था पर इनका वर्चस्व कायम हो सके, इसके लिए वे बहुत ही कूटनीतिक तरीके से ये विदेशी ताकतें तात्कालिक, मध्यकालिक व मध्यकालिक व दिर्घकालिक योजना के तहत काम करती हैं।
2. आर्थिक षड्यन्त्र : किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है वहाँ की मजबूत अर्थव्यवस्था। पहले देशों को भौगोलिक रूप से गुलाम बनाकर आर्थिक रूप से लूटा जाता था। अब आर्थिक रूप से गुलाम बनाने का बहुत बड़ा कुचक्र चल रहा है। इस आर्थिक लूट के चक्रव्यूह के जाल का ताना-बाना ऐसे बुना जाता है कि सामान्य व्यक्ति की समझ में तो ये बातें आ ही नहीं सकती। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं। किसी भी देश की G.D.P.यानी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार होते हैं। अग्रीकल्चर, इन्डस्ट्री एवं सर्विसेज। हमारे जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदा एवं बौद्धिक सम्पदाओं का विदेशी कंपनियाँ पूरा शोषण व दोहन कर रही हैं। आज रिटेलर से लेकर शेयर मार्केट तक, हैल्थ, एजुकेशन, रिसर्च एण्ड डेवलप्मेन्ट, मीडिया, रक्षा सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट से लेकर हमारे देवी-देवता, बच्चों के खिलौने, टी.वी., गाड़ी, मोबाईल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट से लेकर जीवन की हर जरूरत का हर सामान विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। एक तरह से हमने अपना पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रख दिया है। अमेरिका, चीन, जर्मनी व जापान आदि स्वदेशी के रास्ते पर चलकर खुद को स्वावलम्बी बना रहे हैं। हम भारतवासी भी बिना स्वदेशी के अपने देश को स्वावलम्बी नहीं बना सकते।
3. सामाजिक षड्यन्त्र : सामाजिक रूप से देश का कौन नेतृत्व करेगा, सामाजिक आवाज के रूप में किसे सुना जायेगा। किसे आर्थिक, राजनैतिक व अन्य विषयों में विशेषज्ञ का दर्जा मिलेगा। कौन विश्वसुन्दरी होगी? शोश्यल एक्टिविस्ट के रूप में देश में किसे स्थापित करना है। इसके लिए विदेशी सरकारें, विदेशी कंपनियाँ एवं विदेशी फाउंडेशन्स भारतीय एन.जी.ओ. को दान करती हैं। जो विदेशी कंपनियाँ अमेरिका व यूरोप के हितों में काम करें, उसे बाकायदा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता है। जिससे उनकी देश में प्रतिष्ठा बढ़े, उन्हें विश्वसुन्दरी आदि के पुरस्कार दिये जाते हैं, जिससे कि विदेशी कंपनियों का सामान बेचने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे कानून पास करवाने के लिए भी विदेशी कंपनियाँ एन.जी.ओ. को दान देती हैं, जिससे उस देश से उनको जरूरी सुचनाएँ प्राप्त करने में आसानी हो और सरकारी संस्थाएँ कमजोर पड़ें जिससे विदेशी कंपनियों व प्राईवेट क्षेत्र के बड़े-बड़े पूँजीपति अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें। ये सब कार्य इतनी होशियारी से किया जाता है कि इनके खिलाफ उठाने वाले व्यक्ति को ही ये अपराधी या दोषी के रूप में प्रमाणित कर देते हैं।
4. नैतिक षड्यन्त्र : हमारे देश कि संस्कृति, सभ्यता, संयम, सदाचार एवं प्राचीन मूल्य, आदर्शों व गौरव के सभी प्रतीकों, हमारे महापुरुषों, देवी-देवताओं, गौ, गंगा, गायत्री व वेदों से लेकर भगवान राम, कृष्ण व शिव आदि महापुरुषों के बारे में झूठी बातें प्रचारित करना। महापुरुषों को काल्पनिक बताना तथा रामायण व महाभारत आदि महाकाव्यों को उपन्यास बताकर अपने प्राचीन गौरव को झुठलाने का प्रयास करना। टी.वी. पर ऐसे सीरियल व मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में बनवाना व उसमें भोग विलास व दुराचार को ग्लैमर के साथ प्रस्तुत करके देश के लोगों के पुरुषार्थ व चरित्र को नष्ट करने का एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जाता है। ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन खूब मिलें, इसके लिए टी.आर.पी. तय करने वाली कंपनी भी 100% विदेशी नियन्त्रण वाली है। वह टी.आर.पी. बताने वाली विदेशी कंपनी परोक्ष रूप से देश के सभी चैनलों का नियन्त्रण करती हैं। देश की भाषा, भेषज्, भजन, भोजन, भाव व संस्कृति के विनाश का बहुत बड़ा षड्यन्त्र चल रहा है। देश के चरित्र को नष्ट करने का ये चक्रव्यूह हमने नहीं तोड़ा तो देश की बहुत बड़ी हानि हो रही है और आगे बड़ा खतरा आने वाला है। इसी तरह देश में जाति, धर्म व मजहब के नाम पर भी बहुत प्रकार के षड्यन्त्र चलते रहते हैं।
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं को इन सब बातों का गंभीरता से ध्यान रखकर सावधानी पुर्वक खुद इन षड्यन्त्रों से बचना चाहिए व सामान्य कार्यकर्ताओं को भी सावधान करते रहना चाहिए।
वह देश जो अपने वैभव के लिए विख्यात रहा है, वह देश जिसने विदेशियों को बार-बार ललकारा, आज वह फिर लुट रहा है। अमर्यादित भोग, गैर जिम्मेदार एवं संवदेनहीन संस्कृति की काली साया चारों ओर से बढ़ी चली आ रही है। धरती के धन की बेतहासा चोरी जारी है। विकास के लिए उधार ली गई पूंजी का निरन्तर गबन हो रहा है। रिश्वतखोरी मान्यता प्राप्त हो गयी है। कर चोरी को व्यवस्था की मौन स्वीकृति है। देश लुट रहा है लेकिन लुटेरे इस बार विदेशी नहीं हमारे व अपने ही हैं। यह एक दुःखद आश्चर्य किन्तु सत्य है कि जितना विदेशियों ने 200 वर्षों में नहीं लूटा उससे अधिक हमारे अपनों ने ही 65 वर्षों में लूटा है। एक ओर लुटेरों के धन विदेशी बैंकों में बढ़ता जा रहा है और दूसरी ओर प्रतिवर्ष 60 से 70 लाख लोग इसलिए दम तोड़ रहे हैं कि उन्हें समुचित भोजन नहीं नसीब हो पा रहा है। विकास कि यह कैसी बिडम्बना है? कि 84 करोड़ व्यक्ति मात्र 20 रुपये में ही अपना जीवन बसर करने के लिए बेवश हैं। इससे बड़ी और क्या शर्मनाक बात हो सकती है कि हर एक घण्टे में दो अबलाओं की इज्ज़त लूट ली जाती है और तीन मासूमों को इसलिए मार दिया जाता है कि उनके परिजन दहेज नहीं जुटा पाते हैं। हाँ! इस बीच व्यवस्था में एक इतिहास रचा है- वह है आत्महत्याओं का इतिहास। ऐसा न कभी हुआ और न कभी होगा कि जब सुबह की नई किरण देखने से पहले ही 56 किसान आत्महत्या कर लेते हैं। यानि एक दशक में 20 लाख लोगों ने खुद को मार लिया है।
मेरे वीर सपूतों ! इसके पहले कि यह आग बढ़ती हुई आपके घर तक पहुँच जाये, जागिए! उठिए! और आगे बढ़िए! जहाँ है इसे वहीं रोक कर इस तरह बुझा दीजिए कि फिर से कभी सुलगने न पायें। ताकि फिर कोई भूख से मरने न पाये, किसी भी बहन की इज्ज़त न लूटी जाए, किसी अबला की बलि न चढ़े व कोई अन्नदाता आत्महत्या न करें। यदि यह आग आपके पहाड़ जैसे संकल्प से, धरती जैसे धीरज से, समुद्र जैसे सत्याग्रह से नहीं बुझती है तो इसे बुझा दीजिए अपने लहू से। मेरे भाईयों ! विश्वास रखिये कि इस राष्ट्र यज्ञ में आपके साथ पहली आहुति मेरी ही होगी।
आज इतिहास उस मोड़ पर खड़ा है जब गांधीजी ने समाज से सत्याग्रहियों को मांगा था, जब विवेकानन्द जी ने विह्नल होकर युवाओं को पुकारा था, गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा का आह्नान किया था, तो नेता सुभाषचन्द्र बोस जी ने लोगों से रक्त मांगा था और जयप्रकाश जी ने तरुणों की ओर आशा भरी नजरों से देखा था। आज मैं पुकार रहा हूँ, हे! मेरे भारत! मुझे हजारों लाखों ऐसे सत्याग्रही दें, जो इस अन्धी, गूंगी एवं भ्रष्ट व्यवस्था से अपनी आखिरी साँस तक सत्याग्रह करते हुए या तो इसे मिटा दे या स्वयं मिट जायें।
मेरे प्रिय भाईयों ! असत्य के विरुद्ध सत्य, अन्याय के विरुद्ध न्याय, भ्रष्टाचार के विरुद्ध सदाचार के इस शान्तिमय संघर्ष में अब वह वक्त आ गया है कि धरती का कर्ज चुका दिया जाए, नहीं तो आने वाली पीड़ियाँ हमें कभी भी माफ नहीं करेंगी। यदि आप इसमें अन्तिम साँस तक सत्याग्रह करना चाहते हैं तो मेरे पास आईये, मैं आपकी प्रतिक्षा कर रहा हूँ।
एफडीआइ में 80 फीसद काला धन - स्वामी रामदेव
[Friday, July 06, 2012 8:09:49 AM] , नौ अगस्त को रामलीला मैदान में होगा आंदोलन राजनीति से दूर हों स्वायत्त संस्थाएं कोयला मंत्रालय में 200 लाख करोड़ का घोटाला जागरण संवाददाता, लखनऊ : विदेशों में जमा चार सौ लाख करोड़ रुपये काले धन का 80 फीसद हिस्सा एफडीआइ (फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट) के माध्यम सफेद होकर देश में आ रहा है। फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट बनाकर देश में प्रबंधकों की तैनाती तो कर दी जाती है, लेकिन उनके मालिकों के नाम का पता नहीं चलता। नौ अगस्त को दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले आंदोलन के सिलसिले में राजधानी आए योग गुरु स्वामी रामदेव शुक्रवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।
निरालानगर के माधव सभागार में आयोजित मध्य जोन कार्यकर्ता सम्मेलन के उपरांत योग गुरु ने लकड़ी की बनी काले धन की प्रतीकात्मक चाबी को दिखाते हुए कहा कि काले धन की इतनी बड़ी चाबी हिंदुस्तान के पास होगी। जिसके लिए नौ अगस्त को अनिश्चित कालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दिल्ली म्यूनिसिपल बोर्ड द्वारा आंदोलन की अनुमति मिल चुकी है। पुलिस और अग्निशमन विभाग की अनुमति की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस का नाम लिए बगैर योग गुरु ने कहा कि उनके आंदोलन में एक पार्टी को छोड़ सभी हिस्सा ले रहे हैं। योग गुरु ने कहा कि 400 लाख करोड़ रुपये काला देश में लाना, भ्रष्टाचार को मिटाना और देश में साम्राज्यवादी, अन्यायपूर्ण भ्रष्ट व्यवस्था के परिवर्तन और मानवतावादी व्यवस्था को स्थापित करने के पक्षधर सब उनके साथ आ सकते हैं। उन्होंने प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले के बारे में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर अनभिज्ञता जताई, लेकिन स्वायत्तशासी संस्थानों के अध्यक्षों के चुनाव में राजनीतिक हस्तक्षेप न करने की सलाह अवश्य दी।
राजनीतिक हस्तक्षेप से इनकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठते हैं। योग गुरु ने कहा कि समाज सेवी अन्ना हजारे भी उनके आंदोलन के साथ हैं। एक अखबार में प्रधानमंत्री के छपे बयान पर टिप्पणी करते हुए योग गुरु ने कहा कि प्रधानमंत्री के कोयला मंत्रालय में ही 200 लाख करोड़ का कोयला कौड़ियों के दामों में नीलाम कर दिया। टूजी स्पेक्ट्रम व कॉमनवेल्थ गेम जैसे कई घोटाले प्रधानमंत्री के कार्यकाल में ही हुए हैं। इससे पहले योग गुरु ने पंतजलि योग समिति एवं भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के मध्य उप्र के कार्यकर्ताओं का आंदोलन की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। योग गुरु ने कहा कि दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के हर राज्य व शहर में आंदोलन होगा। इलाहाबाद और वाराणसी में भी कार्यकर्ता शामिल होंगे।
वैश्विक षड्यन्त्र ....
देश की लगभग 99 % जनता को लगता है कि देश व दुनियाँ जैसे सामने से दिख रही है वैसे ही सरलता, सहजता, समरसता, प्रेम, सदभावना, समझदारी, लोकतान्त्रिक एवं न्यायपूर्ण तरीको से चल रही है। दुर्भाग्य से जैसे हमें दिख रहा है वैसे दुनियाँ नहीं चल रही है। उदाहरण के तौर पर हम चार विषय प्रस्तुत कर रहे हैं।
1. राजनैतिक षड्यन्त्र : भारत का प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, विदेशमंत्री व रक्षामंत्री ऐसा व्यक्ति बनना चाहिए जो अमेरिका व अमेरिकन कंपनियों तथा अन्य विदेशी कंपनियों के हित में नितियाँ बनाने वाला हो, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय नितियों व विषयों पर अमेरिका के नितियों का समर्थन हो, इसके लिए विदेशी ताकतें सामाजिक व आर्थिक रूप से एक लम्बी कार्ययोजना के तहत काम करती हैं। मिडिया मैनेजमेन्ट से लेकर इमेज-बिल्डिंग के लिए बहुत ही बुद्धिमत्ता के साथ काम करती हैं। आने वाले 5 वर्षों से लेकर 50 वर्षों तक भारत के विकास के माडल कैसे हों जिससे कि विदेशी कंपनियाँ अपनी तकनीक, अपनी फैक्ट्रियाँ एवं अनुसंधान उसी दिशा में करें और विदेशों की प्रतिबंधित दवा, हथियार व अन्य उत्पाद भारत में खपते रहें, भारत एक डैम्पिंग सेन्टर बन जाए, इस प्रकार बहुत से ऐसे विषय हैं। हमारी संसद में भी अमेरिका, यूरोप व अन्य विदेशी कंपनियों तथा उन देशों के समर्थक लोगों को बाकायदा फाइनेंश करके तथा अनेक प्रकार से परोक्ष रूप से मदद करके संसद में तथा विधानसभाओं में भेजा जाता है, जिससे की देश के जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदाओं पर विदेशी कंपनियों का कब्जा हो सके। F.D.I.यानी विदेशी पूँजी निवेश के जरिए विदेशी कंपनियों व भ्रष्टाचार करके देश को लूटने वाले लोगों का भारत के सभी आर्थिक संस्थानों, रिटेल से लेकर शेयर मार्केट तक पूरी अर्थव्यवस्था पर इनका वर्चस्व कायम हो सके, इसके लिए वे बहुत ही कूटनीतिक तरीके से ये विदेशी ताकतें तात्कालिक, मध्यकालिक व मध्यकालिक व दिर्घकालिक योजना के तहत काम करती हैं।
2. आर्थिक षड्यन्त्र : किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत होती है वहाँ की मजबूत अर्थव्यवस्था। पहले देशों को भौगोलिक रूप से गुलाम बनाकर आर्थिक रूप से लूटा जाता था। अब आर्थिक रूप से गुलाम बनाने का बहुत बड़ा कुचक्र चल रहा है। इस आर्थिक लूट के चक्रव्यूह के जाल का ताना-बाना ऐसे बुना जाता है कि सामान्य व्यक्ति की समझ में तो ये बातें आ ही नहीं सकती। बड़े-बड़े बुद्धिमान लोग भी धोखा खा जाते हैं। किसी भी देश की G.D.P.यानी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य आधार होते हैं। अग्रीकल्चर, इन्डस्ट्री एवं सर्विसेज। हमारे जल, जंगल, जमीन, भू-सम्पदा एवं बौद्धिक सम्पदाओं का विदेशी कंपनियाँ पूरा शोषण व दोहन कर रही हैं। आज रिटेलर से लेकर शेयर मार्केट तक, हैल्थ, एजुकेशन, रिसर्च एण्ड डेवलप्मेन्ट, मीडिया, रक्षा सामान, पेट्रोलियम प्रोडक्ट से लेकर हमारे देवी-देवता, बच्चों के खिलौने, टी.वी., गाड़ी, मोबाईल, साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट से लेकर जीवन की हर जरूरत का हर सामान विदेशी कंपनियाँ बेच रही हैं। एक तरह से हमने अपना पूरा देश विदेशी कंपनियों के हाथों में गिरवी रख दिया है। अमेरिका, चीन, जर्मनी व जापान आदि स्वदेशी के रास्ते पर चलकर खुद को स्वावलम्बी बना रहे हैं। हम भारतवासी भी बिना स्वदेशी के अपने देश को स्वावलम्बी नहीं बना सकते।
3. सामाजिक षड्यन्त्र : सामाजिक रूप से देश का कौन नेतृत्व करेगा, सामाजिक आवाज के रूप में किसे सुना जायेगा। किसे आर्थिक, राजनैतिक व अन्य विषयों में विशेषज्ञ का दर्जा मिलेगा। कौन विश्वसुन्दरी होगी? शोश्यल एक्टिविस्ट के रूप में देश में किसे स्थापित करना है। इसके लिए विदेशी सरकारें, विदेशी कंपनियाँ एवं विदेशी फाउंडेशन्स भारतीय एन.जी.ओ. को दान करती हैं। जो विदेशी कंपनियाँ अमेरिका व यूरोप के हितों में काम करें, उसे बाकायदा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जाता है। जिससे उनकी देश में प्रतिष्ठा बढ़े, उन्हें विश्वसुन्दरी आदि के पुरस्कार दिये जाते हैं, जिससे कि विदेशी कंपनियों का सामान बेचने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा सके। ऐसे कानून पास करवाने के लिए भी विदेशी कंपनियाँ एन.जी.ओ. को दान देती हैं, जिससे उस देश से उनको जरूरी सुचनाएँ प्राप्त करने में आसानी हो और सरकारी संस्थाएँ कमजोर पड़ें जिससे विदेशी कंपनियों व प्राईवेट क्षेत्र के बड़े-बड़े पूँजीपति अपना स्वार्थ सिद्ध कर सकें। ये सब कार्य इतनी होशियारी से किया जाता है कि इनके खिलाफ उठाने वाले व्यक्ति को ही ये अपराधी या दोषी के रूप में प्रमाणित कर देते हैं।
4. नैतिक षड्यन्त्र : हमारे देश कि संस्कृति, सभ्यता, संयम, सदाचार एवं प्राचीन मूल्य, आदर्शों व गौरव के सभी प्रतीकों, हमारे महापुरुषों, देवी-देवताओं, गौ, गंगा, गायत्री व वेदों से लेकर भगवान राम, कृष्ण व शिव आदि महापुरुषों के बारे में झूठी बातें प्रचारित करना। महापुरुषों को काल्पनिक बताना तथा रामायण व महाभारत आदि महाकाव्यों को उपन्यास बताकर अपने प्राचीन गौरव को झुठलाने का प्रयास करना। टी.वी. पर ऐसे सीरियल व मनोरंजन के नाम पर ऐसी फिल्में बनवाना व उसमें भोग विलास व दुराचार को ग्लैमर के साथ प्रस्तुत करके देश के लोगों के पुरुषार्थ व चरित्र को नष्ट करने का एक बहुत बड़ा षड्यन्त्र रचा जाता है। ऐसे अश्लील कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन खूब मिलें, इसके लिए टी.आर.पी. तय करने वाली कंपनी भी 100% विदेशी नियन्त्रण वाली है। वह टी.आर.पी. बताने वाली विदेशी कंपनी परोक्ष रूप से देश के सभी चैनलों का नियन्त्रण करती हैं। देश की भाषा, भेषज्, भजन, भोजन, भाव व संस्कृति के विनाश का बहुत बड़ा षड्यन्त्र चल रहा है। देश के चरित्र को नष्ट करने का ये चक्रव्यूह हमने नहीं तोड़ा तो देश की बहुत बड़ी हानि हो रही है और आगे बड़ा खतरा आने वाला है। इसी तरह देश में जाति, धर्म व मजहब के नाम पर भी बहुत प्रकार के षड्यन्त्र चलते रहते हैं।
आंदोलन का नेतृत्व करने वाले कार्यकर्ताओं को इन सब बातों का गंभीरता से ध्यान रखकर सावधानी पुर्वक खुद इन षड्यन्त्रों से बचना चाहिए व सामान्य कार्यकर्ताओं को भी सावधान करते रहना चाहिए।