युद्ध के दौरान परिस्थितियां ऐसी बन जाती थी कि शत्रु के घेरे में रहकर जीवित नहीं रहा जा सकता था। तब जौहर और शाके (महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर, रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करेंगे। या फिर रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे। साका- महिलाओं को जौहर की ज्वाला में कूदने का निश्चय करते देख पुरूष केशरिया वस्त्र धारण कर मरने मारने के निश्चय के साथ दुश्मन सेना पर टूट पड़ते थे। इसे साका कहा जाता है।
1. चित्तौड़गढ़ के साके- चित्तौड़ में सर्वाधिक तीन साके हुए हैं।
प्रथम साका- यह सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी पद्मनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था। अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा और राणा रतनसिंह की अनिंद्य सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने की लालसा हमले का कारण बनी। चित्तौड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार रमणियों ने अगस्त 1303 में किया था।
दूसरा साका- यह 1534 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य के शासनकाल में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी (हाडी) कर्मवती के नेतृत्व में स्त्रियों ने जौहर किया था। राजमाता हाड़ी (कर्णावती) और दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी।
तृतीय साका- यह 1567 में राणा उदयसिंह के शासनकाल में अकबर के आक्रमण के समय हुआ था जिसमें जयमल और पत्ता के नेतृत्व में चित्तौड़ की सेना ने मुगल सेना का जमकर मुकाबला किया और स्त्रियों ने जौहर किया था। यह साका जयमल राठौड़ और फत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के प्रसिद्ध है।
2. जैसलमेर के ढाई साके- जैसलमेर में कुल ढाई साके होना माना जाता है।
प्रथम साका- यह अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। इसमें भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतनसी सहित अगणित योद्धाओं ने असिधारा तीर्थ में स्नान किया और ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया।
दूसरा साका- दूसरा साका फिरोज शाह तुगलक के शासन के शुरुआती वर्षों में हुआ। रावल, दूदा, त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों और योद्धाओं ने शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और दुर्गस्थ वीरांगनाओं ने जौहर किया।
तृतीय साका (अर्ध साका)- यह घटना 1550 ईस्वी में लूणकरण के शासन काल में कंधार के शासक अमीर अली के आक्रमण के समय हुआ था। तीसरा साका अद्र्ध साका कहलाता है। कारण इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ। अत: इसे आधा साका ही माना जाता हैं।
3. गागरोण के किले के साके-
प्रथम साका- 1423 ईस्वी में जब वहां के अतुल पराक्रमी शासक अचलदास खींची के शासनकाल में मांडू के सुल्तान अलपखां (होशंगशाह) गोरी ने आक्रमण किया। भीषण संग्राम के दौरान अचलदास ने अपने बंधु बांधवों और योद्धाओं के साथ वीरगति प्राप्त की। जबकि रानियों व दुर्ग की अन्य ललनाओं ने अपने को जौहर की ज्वाला में होम कर दिया।
दूसरा साका- गागरोण का दूसरा साका 1444 ईस्वी में हुआ। जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया।
4. रणथंभौर का साका-
यह सन् 1301 में अलाउद्दीन खिलजी के ऐतिहासिक आक्रमण के समय हुआ था। इसमें हम्मीर देव चौहान विश्वासघात के परिणामस्वरूप वीरगति को प्राप्त हुआ तथा उसकी पत्नी रंगादेवी ने जौहर किया था। इसे राजस्थान के गौरवशाली इतिहास का प्रथम साका माना जाता है। जब वहां के पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन के विद्रोही सेनापतियों को अपने यहां आश्रय देकर शरणागत वत्सलता के आदर्श और अपनी आन की रक्षा करते हुए विश्वस्त योद्धाओं सहित वीरगति प्राप्त की। वहीं, रानियों व दुर्ग की वीर नारियों ने जौहर का अनुष्ठान किया।
5. जालौर का साका-
कान्हड़देव के शासनकाल में 1311 - 12 में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था।
No comments:
Post a Comment
क्या आपको हमारा किया जा रहा प्रयास अच्छा लगा तो जरूर बताइए.