राजस्थान के ऊर्जा संसाधान
ऊर्जा संसाधन अथवा ऊर्जा की आपूर्ति वर्तमान युग की प्राथमिक आवष्यकता है क्योंकि ऊर्जा की उपलब्धता ही आर्थिक विकास को नियन्त्रित एवं निर्धारित करती है। वर्तमान में उद्योग, परिवहन, कृषि से लेकर घरेलू कार्यों आदि सभी क्रियाओं में ऊर्जा की आवष्यकता होती है, क्योंकि वर्तमान युग मषीनी युग है और मशीनों को चलाने हेतु ऊर्जा की आवष्यकता होती है। ऊर्जा स्रोतों को दो भागों में विभक्त किया जाता है-
(1) परम्परागत ऊर्जा स्त्रोत जैसे कोयला (थर्मल पावर) खनिज तेल (पेट्रोलियम), जल विद्युत एवं अणु शक्ति।
(2) गैर-परम्परागत अथवा ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, बायो गैस आदि।
राजस्थान में उपर्यु क्त दोनों प्रकार के ऊर्जा स्त्रोत उपलब्ध है। राज्य में विगत दशकों में ऊर्जा संसाधनों के विकास में प्रगति की है और वर्तमान सरकार भी ऊर्जा उत्पादन वृद्धि पर अत्यधिक ध्यान दे रही है। राजस्थान के परम्परागत और गैर-परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का संक्षिप्त विवरण द्वारा राज्य के ऊर्जा संसाधनों के वर्तमान स्वरूप एवं विकास की दिषा को स्पष्ट किया जा सकता है।
कोयला
ऊर्जा के प्राथमिक और प्रारम्भिक स्रोतों में कोयला प्रमुख है, जिसका उपयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। वर्तमान में कोयला का उपयोग तापीय ऊर्जा उत्पादित करने में किया जाता है। राजस्थान राज्य कोयला प्राप्ति की दृष्टि से निर्धन है और यहाँ केवल लिग्नाइट प्रकार का कोयला प्राप्त होता है। इसे भूरा कोयला भी कहा जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा 45 से 55 प्रतिशत तक होती है और यह धुआं अधिक देता है, अतः इसका औद्योगिक उपयोग नहीं होता।
राजस्थान में लिग्नाइट कोयला बीकानेर जिले के पलाना क्षेत्र में प्राप्त होता है। पलाना के अतिरिक्त खारी, चान्नेरी, गंगा सरोवर, मुंध, बरसिंगसर आदि में भी कोयला मिलता है। बीकानेरक्षेत्र में लगभग 56,000 टन कोयला प्रतिवर्ष निकाला जाता है। पलाना क्षेत्र में टर्शरी कोयला जमाव है तथा यहाँ ओसतन 6 मीटर मोटाई की कोयला परते हैं। यहाँ कोयला खनन कूपक शोधन विधि से निकाला जाता है, तत्पष्चात इसका शौधन कर तापीय विद्युत गृहों आदि में उपयोग हेतु भेजा जाता है। एक अनुमान के अनुसार पलाना क्षेत्र में लगभग दो करोड़ टन कोयले के सुरक्षित भण्डार का अनुमान है। भगर्भिक सर्वे क्षणों द्वारा बीकानेर के अतिरिक्त नागौर और बाड़मेर जिलों में भी लिग्नाइट के भण्डारों का पता चला है।
तापीय विद्युत
कोयले द्वारा उत्पादित विद्युत तापीय विद्युत कहलाती है। इसके लिये उत्तम कोटि के कोयले की आवष्यकता होती है जो राजस्थान में उपलब्ध नही है। अतः अन्य राज्यों से मंगाना पड़ता है। राजस्थान राज्य में तापीय विद्युत उत्पादन पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है और वर्तमान में कोटा सुपर थर्मल, सूरतगढ़ ताप परियोजना और छबड़ा थर्मल से तापीय विद्युत का उत्पादन हो रहा है और अन्य कुछ योजनायें निर्माणाधीन है।
कोटा सुपर थर्मल विद्युत परियोजना का प्रारम्भ 1978 में प्रारम्भ किया गया। इसके प्रथम चरण की इकाई में जनवरी, 1983 और द्वितीय चरण की इकाई ने जुलाई, 1983 में विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हुआ। इसकी उत्पादन क्षमता और इकाईया ं की क्षमता में क्रमिक रूप से वृद्धि की जा रही है। अगस्त, 2009 में इसकी सातवी इकाई से उत्पादन प्रारम्भ हो गया। वर्तमान में कोटा थर्मल राज्य का 630 मेगावाट विद्युत प्रदान कर रहा है, इसमें ओर अधिक वृद्धि की सम्भावना है।
सूरतगढ़ ताप विद्युत परियोजना राजस्थान की प्रमुख विद्युत परियोजना है। इसे गंगानगर जिले के सूरतगढ़ में स्थापित किया गया है। यहाँ वर्तमान में 6 इकाईयाँ विद्युत उत्पादन कर रही है, इनमें प्रत्येक की क्षमता 250 मेगावाट है। छबड़ा ताप विद्युत परियोजना- बारा जिले के छबड़ा कस्बे में तापीय विद्युत परियोजना की प्रथम इकाई से सितम्बर, 2009 में विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हो गया। इसकी द्वितीय इकाई से भी विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हो चुका है।
सतपुड़ा विद्यत गृह से भी राजस्थान को विद्युत प्राप्त होती है। यह गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान का सम्मलित ताप विद्युतगृह है। इससे राजस्थान को 125 मेगावाट विद्युत प्राप्त होती है।
तापीय विद्युत उत्पादन के प्रति राज्य सरकार सचेष्ट है। इस दिषा में किये जा रहे विषेश प्रयत्न हैं-
♥ बीकानेर के पलाना क्षेत्र में 60 मेगावाट क्षमता का ताप विद्युत गृह स्थापित करना।
♥ बीकानेर के ही बरसिंगपुर में 420 मेगावाट क्षमता की दो इकाईयो ं को स्थापित करने का कार्य नेवेली लिग्लाइट द्वारा सम्पन्न किया जाना है।
♥ धौलपुर में थर्मल गैस पावर प्रोजक्ट का कार्य प्रगति पर है।
♥ सूरतगढ़ और छबड़ा ताप विद्युत गृहों को ‘सुपर क्रिटिकल’ बनाने की घोशणा की गई है,
♥ बाँसवाड़ा में एक सुपर क्रिटिकल श्रेणी का ताप विद्युत उत्पादन केन्द्र का निर्माण प्रस्तावित है।
♥ झालावाड़ में कालीसिंध नदी पर छह-छह सौ मेगावाट की दो इकाईयो ं का कार्य प्रगति पर है।
खनिज तेल/पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस
खनिज तेल अथवा पैट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का यौगिक है जो अवसादी शैलों में विषिष्ट स्थानों पर पाया जाता है तथा प्राकृतिक गैस के साथ निकलता है। राजस्थान के भगार्भिक एवं चुम्बकीय सर्वे क्षण से यह तथ्य स्पष्ट हुए कि पष्चिमी राजस्थान क्षेत्र में खनिज तेल और गैस के भण्डार हो सकते हैं। इसी आधार पर यहाँ पैट्रोलियम की खोज का कार्य आरम्भ हुआ। तेल और प्राकृतिक गैस आयोग ने फ्रेन्च विषेशज्ञों की देखरेख में जैसलमेर में भारती टीबा पर खुदाई का कार्य प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम 1996 में जैसलमेर के उत्तर-पष्चिम में मनिहारी टीबा के पास ‘कमली ताल’ में गैस निकली।
जैसलमेर के अनेक क्षेत्रों में तथा बाड़मेर-सांचोर बेसिन में केयर्न कम्पनी शैल और तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग के संयुक्त प्रयासों से बाड़मेर के बायतू क्षेत्र में तेल भण्डार को खोज निकाला। इसी के साथ राजस्थान में पैट्रोलियम के भण्डारों से कच्चा खनिज तेल निकलाने का रास्ता खुलगया। अकेले बायतू कुएं से प्रतिदिन पचास हजार बैरल कच्चा तेल प्राप्त किया जा सकता है।इस प्रकार राजस्थान, गुजरात और असम के पश्चात् पैट्रोलियम उत्पादन करने वाला तीसरा राज्य बन गया है। बायतू के अतिरिक्त नगर, कोसलू, गुढ़ा, बाड़मेर हिल, फतहगढ़ में भी तेल के भण्डारों का पता लगाया गया है। कम्पनी का अनुमान है कि बायतू-कवास ब्लाक में 45 करोड़ से 110 करोड़ बैरल तेल का भण्डार है। इसी प्रकार गुढ़ा मलानी क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाला तेल का भण्डार मिला है। विषेशज्ञों का कहना है कि बोम्बे हाई और गोदावरी बेसिन के पश्चात् इस क्षत्र में देश का सबसे बड़ा तेल का भण्डार हो सकता है। यहाँ न केवल तेल अपितु प्राकृतिक गैस का अपूर्व भण्डार है। वर्तमान में यहाँ केयर्न कम्पनी तथा भारत की ओ.एन.जी.सी. ने पैट्रोलियम निकालने का कार्य प्रारम्भ कर दिया है। 29 अगस्त, 2009 को प्रधानमंत्री ने मंगला प्रोसेसिंग टर्मिलन राष्ट्र को समर्पित किया। इसी के साथ यहाँ तेल उत्पादन का कार्य प्रारम्भ हो गया। यहाँ उत्पादित तेल को गुजरात में ले जाकर शोधन किया जा रहा। यद्यपि तेल शौधक संयन्त्र (रिफायनरी) राजस्थान में लगाने के प्रयत्न भी किये जा रहे हैं।
गैस आधारित विद्युत परियोजना
राजस्थान में गैस पर आधारित विद्युत परियोजना के अन्तर्गत अन्ता विद्युत परियोजना प्रारम्भ की गई। कोटा जिले में अन्ता नामक कस्बे में गैस आधारित बिजलीघर की प्रथम इकाई जिससे इनकी क्षमता दुगनी हो जायगी। का प्रारम्भ 21 जनवरी, 1989 को किया गया। इस इकाई से 88 मेगावाट बिजली उत्पादित होती है, यद्यपि इसकी कुल क्षमता 413 मेगावाट है।
इसी प्रकार बोम्बे हाई गैस पर आधारित दो संयन्त्र की स्थापना की योजना सवाई माधोपुर और बाँसवाड़ा में है। इनमें प्रत्येक की क्षमता 400 मेगावाट होगी। केन्द्रीय सरकार ने इन योजनाओं की स्वीकृति दे दी है।
जल विद्युत
जल विद्युत वर्तमान में राजस्थान का प्रमुख ऊर्जा का स्त्रोत है। यद्यपि राज्य की प्राकृतिक परिस्थितियाँ जलविद्युत उत्पादन के लिये उपयुक्त नही है फिर भी राज्य में विद्युत आपूर्ति का लगभग चालीस प्रतिशत जल विद्युत से ही प्राप्त होता है। राजस्थान में जहाँ राज्य की नदियों पर बाध बना कर विद्युत उत्पादित की जाती है वहीं अन्य राज्यों से भी बिजली प्राप्त की जाती है।
राज्य की प्रमुख जल विद्युत परियोजनायें निम्नलिखित है-
1. चम्बल परियोजना- यह राजस्थान और मध्य प्रदेश की सामूहिक याजना है। इसके अन्तर्गत विद्युत उत्पादन के लिये तीन बाँध-गाँधी सागर, राणा प्रताप सागर और जवाहर सागर बनाये गये हैं। जिन पर स्थापित विद्युत ग्रहों से जल विद्युत उत्पादित की जाती है। गाँधी सागर पर 23 मेगावाट के चार और 27 मेगावाट का एक संयन्त्र है। राणा प्रताप सागर पर चार संयन्त्र है, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 43 मेगावाट है। इसी प्रकार जवाहर सागर पर 35 मेगावाट क्षमता की तीन इकाईयाँ है।
2. भाखड़ा-नांगल योजना- यह पंजाब में भाखड़ा-नागल पर स्थापित परियोजना है। इससे राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू तथा बीकानेर जिलों को विद्युत प्रदान की जाती है। इस योजना से राजस्थान का 168.5 मेगावाट विद्युत प्राप्त होती है।
3. माही विद्युत परियोजना- बाँसवाड़ा जिले में माही नदी पर बनाए गए बाँध पर स्थापित विद्युत गृहों से बिजली उत्पादित की जाती है। इसके प्रथम और द्वितीय इकाई से राज्य को 140 मेगावाट विद्युत उपलब्ध होती है।
4. व्यास परियोजना- यह राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना की चार इकाईयाँ हैं जिनकी प्रत्येक की क्षमता 165 मेगावाट है। राजस्थान को इस परियोजना से 408 मेगावाट विद्युत प्राप्त होती है।
5. इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना- यद्यपि यह परियोजना मूलतः सिंचाई परियोजना है, किन्तु इस पर कई जल विद्युत गृह स्थापित किए गए है, जिनमें 22 हजार किलोवाट विद्युत उत्पादित होती है। इनमें पूंगल पर दो, सूरतगढ़ पर दो तथा चारणवाली योजना पर एक विद्युत गृह बनाया है। अनूपगढ़ शाखा पर भी तीन मिनी हाइडल प्लान्ट बनाये जा रहे है। इनमें दो पूर्ण हो चुके है।
उपर्यु क्त विद्युत योजनाओं के अतिरिक्त नर्मदा-घाटी योजना से राजस्थान को 100 मेगावाट विद्युत प्राप्त होगी, जिसका उपयोग सिरोही, जालौर, बाड़मेर जिलों में किया जा सकेगा। राज्य में कुछ अन्य छोटी जल विद्युत योजनायें भी विचाराधीन है।
परमाणु ऊर्जा
ऊर्जा की कमी को दर करने हेतु भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास को प्रारम्भ किया गया। इसके लिये सर्वप्रथम तारापुर में परमाणु केन्द्र स्थापित किया गया और दसरा केन्द्र ‘राजस्थान परमाणु शक्ति परियोजना’ के रूप में प्रारम्भ किया गया। इसकी स्थापना रावतभाटा नामक स्थान पर की गई जो चित्तौड़गढ़ जिले में हैं। इस परियोजना का निर्माण और प्रबन्ध भारतीयो ं द्वारा तथा डिजाइन और प्रारम्भिक इंजीनियरिग कार्य कनाड़ा वैज्ञानिकों द्वारा किया गया।
राजस्थान परमाणु शक्ति परियोजना भारत की ऐसी पहली परियोजना है जो प्राकृतिक यूरेनियम, भारी जल एवं प्रषीतन द्वारा चालित है। इस केन्द्र के समस्त परमाणु उपकरण, कंक्रीट के बने विषेश गोलाकार रिएक्टर भवन में रखे गये हैं जिसका अर्द्धव्यास 42 मीटर है। इसकी पहली इकाई 11 अगस्त, 1972 को प्रारम्भ की गई जिसकी क्षमता 400 मेगावाट की है। वर्तमान में इसकी 6 इकाइयो ं से विद्युत उत्पादन हो रहा है तथा 7 वीं और 8 वीं इकाई का निर्माणकार्य प्रारम्भ किया जा रहा है।
राजस्थान में विद्युत उत्पादन एवं उपभोग
राजस्थान में विद्युत उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है। राज्य में जल विद्युत तापीय विद्युत, गैस तथा परमाणु विद्युत से आपूर्ति के उपरान्त भी खपत अधिक होने के कारण अन्य राज्यों से बिजली खरीदी जाती है। राज्य में विभिन्न स्रोतों से विद्युत उपलब्धता तालिका से स्पष्ट है-
तालिका राजस्थान में विभिन्न स्त्रोतों से विद्युत उपलब्धता (2006-07)
उत्पादन प्रकार कुल विद्युत उत्पादन (दस लाख किलोवाट में)
1. विद्युत उत्पादन
(अ) तापीय 16768.48
(ब) जल विद्युत 32427.1
(स) गैस द्वारा 358.80
2. अन्तर राज्यीय परियोजनाओं 12084.85
में राजस्थान का हिस्सा
एवं क्रय की गई विद्युत
वितरण हेतु कुल उपलब्ध 32454.85
विद्युत
स्त्रोत: स्टेटिस्टिकल एब्सट्रेक्ट, राजस्थान-2009, पृ.257
राजस्थान में विद्युत उपभोग में अत्यधिक वृद्धि हो रही है क्योंकि कृषि, उद्योग, व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं घरेलू उपयोग निरन्तर अधिक होता जा रहा है।
राजस्थान के विद्युत वितरण की एक अन्य विषेशता ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली देना है अर्थात् ग्रामीण विद्युतिकरण पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। उपलब्ध आकड़ों के अनुसार राज्य के 222 नगरों के अतिरिक्त 39810 ग्रामों को विद्युत पहुँचाई गई है और प्रतिवर्ष इसमें वृद्धि हो रही है। इसका उद्देष्य ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत पहुँचा कर कृषि विकास को अधिक लाभ पहुँचाना है।
ऊर्जा के गैर-परम्परागत अथवा वैकल्पिक स्त्रोत
ऊर्जा की माग में निरन्तर हो रही वृद्धि और उसके अनुपात में उपलब्धता का कम होना आज एक विष्वव्यापी समस्या है। इस ऊर्जा संकट का एक समाधान गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतोंअर्थात् सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भ-तापीय ऊर्जा, बायो गैस आदि का विकास कर ऊर्जा आपूर्ति करता है। यह इसलिये भी आवष्यक है क्योंकि परम्परागत स्त्रोत जैसे कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ईंधन समाप्त होने वाले संसाधन है जिनकी आपूर्ति पुनः संभव नही है। जब कि गैर-परम्परागत स्त्रोत प्रकृति से परिचालित हैं जिनका उपयोग निरन्तर सम्भव है। इनकी एक विषेशता यह भी है कि इनसे पर्यावरण प्रदूषित नही होता।
भारत में ऊर्जा संकट को दृष्टिगत रखते हुए गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है। राजस्थान में भी इस दिषा में विषेश प्रयत्न किये जा रहे है। इसके लिये राज्य सरकार ने ‘राजस्थान ऊर्जा विकास एजेन्सी‘ ;त्म्क्।द्ध का गठन 21 जनवरी, 1985 में किया जिसका उद्देष्य राज्य में गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का समन्वित विकास करना है। राजस्थान में ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों के विकास की अत्यधिक सम्भावना है विषेशकर सौर ऊर्जा की, पवन ऊर्जा, इसके अतिरिक्त बायो गैस का उपयोग भी किया जा रहा है।
सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा अर्थात् सूर्य से प्राप्त ऊर्जा, ऊर्जा का एक अनवरत स्त्रोत है। राजस्थान में सौर ऊर्जा की अपार सम्भावनायें हैं क्योंकि यहाँ वर्ष भर आकाश साफ रहता है और सूर्य का ताप प्राप्त होता रहता है। सौर ऊर्जा का उपयोग घरेलू कार्यो में, कृषि एवं उद्योगां में किया जा सकता है। प्रकाश हेतु लाइटें, कुंओं से पानी खीचने, कृषि जिन्सो को सुखाने तथा शीत भण्डारण के अतिरिक्त खाना बनाने, तथा पानी गर्म करने आदि में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसी के साथ कुटिर उद्योग में भी ऊर्जा हेतु इसका उपयोग सम्भव है। सौर ऊर्जा का सीधा उपयोग नही होता अपितु इस संग्रहित करने हेतु ‘सौर संग्राहक’ का प्रयोग किया जाता है। जोधपुर में एक 30 मेगावाट सौर ताप शक्ति उत्पादक पद्धति की प्रोजेक्ट को विष्व पर्यावरण फण्ड द्वारा विकसित तकनीक से लगाया गया जिसका उद्देष्य सौर ऊर्जा की उपयोगिता प्रदर्षित करना है। सौर ऊर्जा से प्रकाश प्राप्त करने के लिये फोटोवोल्टिक तकनीक का उपयोग होता है। सौर ऊर्जा से प्रकाश लाइटों के साथ ऊर्जा से चलने वाले पम्प लगाये जाते हैं। राजस्थान में अनेक ग्रामीण क्षेत्रों सौर लाइटें लगाई जा चुकी हैं, इसमें सीमावर्ती क्षेत्र भी सम्मलित है। सौर ऊर्जा में मुख्य समस्या इसकी अधिक लागत है। यद्यपि इस पर सरकार अनुदान देती है फिर भी लागत अधिक होती है। राजस्थान में सौर ऊर्जा निसन्देह ऊर्जा का एक ऐसा स्त्रोत है जो भविष्य में ऊर्जा की कमी को दर करने में सहायक होगा।
पवन ऊर्जा
पवन ऊर्जा अर्थात् हवाओं द्वारा ऊर्जा प्राप्त करना सोर ऊर्जा के समान प्रकृति प्रदत्त है तथा विश्व के अनेक भागें में और अब भारत में भी इसका सफलतापूर्वक प्रयोग अनेक स्थानों पर किया जा रहा है। इनमें राजस्थान भी एक राज्य है जहाँ पवन ऊर्जा का विकास संभव है तथा इस दिषा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाये जा रहे है।
पवन ऊर्जा प्राप्त करने हेतु ‘पवन चक्की’ लगा कर इसे वायु से परिचलित किया जाता है और उससे उत्पन्न शक्ति का एकत्र कर जनरेटर चलाने, पम्पसेट चलाने, विद्युत व्यवस्था आदि में उपयोग में लिया जाता है। राजस्थान में विशेशकर पष्चिमी राजस्थान में इसका विकास सर्वाधिक किया जा सकता है क्योंकि यहाँ वायु की गति 20 से 40 किमी. होती है। केन्द्रीय सरकार ने इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में चारे और चरागाह विकास हेतु पवन चक्कियों से ऊर्जा प्राप्त करने का कार्यक्रम बनाया है। इसी प्रकार टाटा एनर्जी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, दिल्ली ने राजस्थान में पवन ऊर्जा विकास हेतु दीर्घकालिन योजना तैयार की है। राज्य में मार्च, 2000 में पवन ऊर्जा विद्युत उत्पादन की नीति घोषित की गई। इस नीति के तहत सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में पवन ऊर्जा की क्रमषः 6 और 8 परियोजनाओं में विद्युत उत्पादन प्रारम्भ हो गया है।
राज्य में पवन ऊर्जा विकास की निम्न योजनायें उल्लेखनीय है-
सार्वजनिजक क्षेत्र में:
(1) जैसलमेर में 2 मेगावाट की पहली पवन ऊर्जा परियोजना अगस्त, 1999 में राजस्थान स्टेट पावर कॉरपोरेशन ने प्रारम्भ की।
(2) चित्तौड़गढ़ जिले में देवगढ़ ग्राम में जून, 2000 में 2.25 मेगावाट पवन ऊर्जा परियोजना प्रारम्भ की गई।
(3) जौधपुर जिले के फलौदी में 2.10 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजना का प्रारम्भ मार्च, 2001 में किया गया।
(4) जैसलमेर के बड़ाबाग में 4.9 मेगावाट का पवन ऊर्जा संयन्त्र लगाया गया।
(5) जौधपुर के मथानिया ग्राम में 140 मेगावाट क्षमता की एकीकृत और चक्रीय परियोजना स्थापित की गई।
निजी क्षेत्र में
राजस्थान में निजी क्षेत्र में पवन ऊर्जा के लिये गेल कालानी इंडस्ट्रीज लि., इन्दौर ने तथा विषाल ग्रुप अहमदाबाद द्वारा पवन ऊर्जा संयत्र लगाकर विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। निजी क्षेत्र में अन्य परियोजनाओं को स्थापित करने की योजना है।
बायो गैस
बायो गैस पषुओं का गोबर, खेतिहर अपशिष्ट आदि से तैयार की जाती है। इसके लिये एक साधारण संयत्र लगाया जाता है उसमें ये अपषिष्ट डाल दिये जाते है, उससे जो गैस बनती है उसका उपयोग घरेलू ईधन, लाइटें जलाने आदि तथा 100 किलोवाट तक के विद्युत उपकरण चलाने में किया जा सकता है। राजस्थान के ग्रामीण अचलों में जहाँ गोबर तथा कृषि अपशिष्ट बहुतायत से होता है वहाँ ये संयत्र लगाये जा रहे है। राज्य में पचास हजार से भी अधिक बायोंगैस संयत्र लगाये जा चुके है। इस कार्य में केन्द्र सरकार राष्ट्रीय बायों गैस विकास योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार को सहायता देती है।
अन्य स्त्रोत
उपर्यु क्त वर्णित वैकल्पिक स्त्रोतों के अतिरिक्त नगरीय एवं कृषि अपषिष्ट से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। नगरों में प्रतिदिन निकलने वाले कूड़ा-करकट से विद्युत उत्पादन हेतु पाली और बालोतरा में 25 मेगावाट क्षमता की परियोजना लगाई गई है। कोटा के निकट कृषि अपषिष्ट से विद्युत उत्पादन योजना के अतिरिक्त अनेक अन्य प्रस्तावों पर कार्य चल रहा है। अन्त में यह कह सकते है कि राजस्थान में यद्यपि ऊर्जा स्त्रोतों की कमी है, किन्तु ऊर्जा के उचित उपयोग तथा ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोतों का अधिक से अधिक उपयोग कर इस कमी को दर किया जा सकता है।
1. राजस्थान में परमाणु ऊर्जा केन्द्र कहाँ स्थित है?
(अ) सूरतगढ़ (ब) रावतभाटा
(स) छबड़ा (द) बरसिंहपुर
2. राजस्थान का प्राकृतिक गैस पर आधारित विद्युतगृह कहाँ है?
(अ) बरसिंगपुर (ब) पलाना (स) अन्ता (द) फलौदी
3. इनमें से कौन-सा तापीय विद्युत केन्द्र नहीं है?
(अ) कोटा (ब) रावतभाटा (स) सूरतगढ़ (द) छबड़ा
4. पवन ऊर्जा के विकास की उपयुक्त दषायें राजस्थान के किस क्षेत्र में सर्वाधिक है?
(अ) पष्चिमी राजस्थान (ब) पूर्वी राजस्थान
(स) दक्षिणी राजस्थान (द) हाड़ौती क्षेत्र
5. बाड़मेर जिले के किस क्षेत्र से कच्चा खनिज तेल निकाला जा रहा है।
(अ) बयातू (ब) बोलोत्तरा (स) गुढ़ामलानी (द) रामगढ़
6. राज्य में गैर-परम्परागत किस ऊर्जा स्त्रोत के विकास की सर्वाधिक सम्भावना है?
(अ) बायो गैस (ब) सौर-ऊर्जा
(स) पवन ऊर्जा (द) भू-तापीय ऊर्जा
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