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राजस्थान के कुछ स्थलों के वीडियो

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बुंगरी माता का मंदिर या तेजाजी की बहिन राजल, नागौर

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नागौर के खरनाल में वीर तेजाजी की बहिन बुंगरी माता का मंदिर....एक बहिन जिसने अपने भाई के बलिदानी होने पर अपने भी प्राण त्याग दिए थे ....यह भारतीय इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है .....खरनाल में तेजाजी के मंदिर से कुछ ही दूरी पर लाल माटी की पाल के बीच तालाब के किनारे खेजड़ी को ओट लिए बुंगरी माता का मंदिर ....भाई बहिन के प्यार की गाथा आज भी उसी लय में सुनाता है .तेजाजी की एक ही बहिन थी राजल बाई . . जिन्
होने लीलण द्वारा तेजाजी के बलिदान की खबर सुनकर बकरियां चराते हुए नायक जाति की एक किशोरी के साथ ही अपने प्राण त्याग दिये थे . . आज उस जगह पर उस नायक कन्या का भी चबुतरा है . . राजल बाई के बारे मे कहा जाता है कि उन्होने वही तालाब की पाल पर ही समाधि ले ली थी . इसलिये उन्हे बुंगरी माता कहा जाता है . . उनका मंदिर तेजाजी के मंदिर से कुछ ही दूरी पर है . . उसी हाइवे के पास नागौर की और आते हुए . . . जहां तेजाजी के मेले के कुछ दिन बाद मेला लगता है . . यह स्थान अनुपम ग्रामीण प्राक्रितिक सौन्दर्य और भाई बहिन के प्यार और समर्पण का प्रतिक है . .




स्रोत: http://www.facebook.com/nagaurke.yuva

http://veertejacha…

राजस्थान में हुए साके

युद्ध के दौरान परिस्थितियां ऐसी बन जाती थी कि शत्रु के घेरे में रहकर जीवित नहीं रहा जा सकता था। तब जौहर और शाके (महिलाओं को अपनी आंखों के आगे जौहर की ज्वाला में कूदते देख पुरूष कसुम्बा पान कर, रणक्षेत्र में उतर पड़ते थे कि या तो विजयी होकर लोटेंगे अन्यथा विजय की कामना हृदय में लिए अन्तिम दम तक शौर्यपूर्ण युद्ध करते हुए दुश्मन सेना का ज्यादा से ज्यादा नाश करेंगे। या फिर रणभूमि में चिरनिंद्रा में शयन करेंगे।  साका-महिलाओं को जौहर की ज्वाला में कूदने का निश्चय करते देख पुरूष केशरिया वस्त्र धारण कर मरने मारने के निश्चय के साथ दुश्मन सेना पर टूट पड़ते थे। इसे साका कहा जाता है।
1. चित्तौड़गढ़ के साके- चित्तौड़ में सर्वाधिक तीन साकेहुए हैं। प्रथम साका- यह सन् 1303 में राणा रतन सिंह के शासनकाल में अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण के समय हुआ था। इसमें रानी पद्मनी सहित स्त्रियों ने जौहर किया था। अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा और राणा रतनसिंह की अनिंद्य सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने की लालसा हमले का कारण बनी। चित्तौड़ के दुर्ग में सबसे पहला जौहर चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के नेतृत्व में 16000 हजार…
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